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ग़ज़ल
राह-ए-जुनून-ए-शौक़ में हम 'उम्र-भर चले
लेकिन ख़बर नहीं है किधर थे किधर चले
मुनव्वर ताबिश सम्भली
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ मिरी हसरतों से कम क्यों हो
वफ़ा की राह में ये लग़्ज़िश-ए-क़दम क्यों हो
मजीद खाम गानवी
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ में आशुफ़्ता-सामानों पे क्या गुज़री
ख़िरद-मंदों पे क्या बीती गरेबानों पे की गुज़री
इसहाक़ नाशाद
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ की राहों में जब अपने क़दम निकले
निगार-ए-हुस्न की ज़ुल्फ़ों के सारे पेच-ओ-ख़म निकले
शाहिद भोपाली
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ में कुछ ऐसा खो गया हूँ मैं
कि वो नज़र में हैं और उन को ढूँढता हूँ मैं
नश्तर क़ाइमगंजवी
ग़ज़ल
मुझ पर जुनून-ए-शौक़ का क्यूँ-कर असर ग़लत
गर ये ग़लत तो राह ग़लत राहबर ग़लत
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ को दीवाना-पन कहना ही पड़ता है
यहाँ तो राहबर को राहज़न कहना ही पड़ता है
साबिर देहलवी
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ में ऐसा भी वक़्त आता है इंसाँ पर
कि आती है हँसी ख़ुद अपने ही जैब-ओ-गरेबाँ पर
मुस्लिम अंसारी
ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ का हासिल न तुम समझे न हम समझे
कहाँ दोनों की है मंज़िल न तुम समझे न हम समझे