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ग़ज़ल
दिन तिरे हिज्र में कट जाता है जैसे-तैसे
मुझ से रहती है ख़फ़ा मेरी नज़र शाम के बाद
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
दिन तो यारों में गुज़र ही गया जैसे तैसे
दर्द कुछ और बढ़ा हिज्र में जब रात हुई