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ग़ज़ल
हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं खुद्दारी-ए-साहिल
जहाँ साक़ी हो तू बातिल है दा'वा होशियारी का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किया यक-सर गुदाज़-ए-दिल नियाज़-ए-जोशिश-ए-हसरत
सुवैदा नुस्ख़ा-ए-तह-बंदी-ए-दाग़-ए-तमन्ना है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बच रहा था एक आँसू-दार-ओ-गीर-ए-ज़ब्त से
जोशिश-ए-ग़म ने फिर इस क़तरे को दरिया कर दिया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अब लहू बन कर मिरी आँखों से बह जाने को है
हाँ वही दिल जो हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया रहा
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
जलें हैं कब की मिज़्गाँ आँसुओं की गर्म-जोशी से
उस आब-ए-चश्म की जोशिश ने आतिश दी नीस्ताँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
जोशिश-ए-चश्म-ए-अश्क-बार मुफ़्त न रख करम का बार
मेरी लगी तो बुझ चुकी अपनी लगी बुझाए जा
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
आह ये दिल कि जाँ-गुदाज़ जोशिश-ए-इज़्तिराब है
हाए वो दौर जब कभी लुत्फ़ था इज़्तिराब में
असर सहबाई
ग़ज़ल
हाए वो दिन गुज़र गए जोशिश-ए-इज़्तिराब के
नींद क़फ़स में आ गई अब ग़म-ए-बाल-ओ-पर कहाँ
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
ये नहीं कहने का 'जोशिश' होगा जो साहिब-ए-दिमाग़
ज़ुल्फ़-ए-यार ओ नाफ़ा-ए-तातार दोनों एक हैं