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ग़ज़ल
हवा के ख़ौफ़ से लिपटा हुआ हूँ ख़ुश्क टहनी से
कहीं जाना नहीं जाने की तय्यारी नहीं करनी
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
जब दिल था शगुफ़्ता गुल की तरह टहनी काँटा सी चुभती थी
अब एक फ़सुर्दा दिल ले कर गुलशन की तमन्ना कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
नाज़-ए-चमन वही है बुलबुल से गो ख़िज़ाँ है
टहनी जो ज़र्द भी है सो शाख़-ए-ज़ाफ़राँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
माना रस्ता बहुत कठिन है फिर भी साया-दार शजर हैं
टहनी को तलवार न समझो आँचल को दीवार न जानो