आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ढलक"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ढलक"
ग़ज़ल
ऐ 'मुसहफ़ी' मेरे हाल पे अब क्यूँ-कर न कोई अफ़सोस करे
बे-साख़्ता दिल बेताब हुआ आँसू की ढलक फिर वैसी ही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अनवर निज़ामी जबल पुरी
ग़ज़ल
कभी अश्क बन के ढलक गई कभी रश्क बन के झलक गई
वो शराब जाम-ए-हयात से जो शबाब बन के छलक गई
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
आबरू कहते हैं जिस को है 'मुहिब' इक क़तरा आब
जब ढलक जावे तो फिर उस का उठाना है अबस