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ग़ज़ल
इमाम बारा बुरूज बारा अनासिर-ओ-जिस्म-ओ-रूह ऐ दिल
यही तो सरकार-ए-हक़-तआला की हैं मुदारुलमहाम तीसों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हमारे जान-ओ-ईमाँ हैं अमानत रब त'आला की
बड़ी बे-आबरूई है इन्हें यूँही लुटाने में
फखरुद्दीन गौरी फैज़
ग़ज़ल
उस बुत-ए-पैमाँ-गुसिल को जब कि मैं लाता हूँ घर
कुई निकोई दे के बाला मुझ को ताला दे गया