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ग़ज़ल
ये जो कुछ देखते हैं हम फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती है
तख़य्युल के करिश्मे हैं बुलंदी है न पस्ती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
हम तख़य्युल के मुजद्दिद हम तसव्वुर के इमाम
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शौकत-ए-फ़न की क़सम हुस्न-ए-तख़य्युल की क़सम
दिल के का'बे में अज़ाँ हो तो ग़ज़ल होती है
नाज़ ख़यालवी
ग़ज़ल
बहुत ऊँचा उड़ा लेकिन अब इस ओज-ए-तख़य्युल से
किसी दुनिया-ए-रंगीं में उतरता जा रहा हूँ मैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
उलट जाएँगी तदबीरें बदल जाएँगी तक़दीरें
हक़ीक़त है नहीं मेरे तख़य्युल की है ख़ल्लाक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सालिक है क्यूँ तख़य्युल-ए-तर्क-ए-वजूद में
नक़्श-ए-सुवर का रंग है तेरे शुहूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
ज़मीं पैरों के छाले रोज़ चुन लेती है पलकों से
तख़य्युल रोज़ ले उड़ता है मुझ को आसमानों में