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ग़ज़ल
मुकाफ़ात-ए-अमल ख़ुद रास्ता तज्वीज़ करती है
ख़ुदा क़ौमों पे अपना फ़ैसला जारी नहीं करता
आसी करनाली
ग़ज़ल
असीरान-ए-वफ़ा घबराएँ क्यूँ तज्वीज़-ए-ज़िंदाँ से
यहीं तो इम्तिहान-ए-फ़ितरत-ए-आज़ाद होता है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
मुझे तज्वीज़ करते हो कि ख़ामोशी इबादत है
चुभा जो काँटा ख़ुद को शोर फिर क्यूँ तुम मचाते हो
साइमा जबीं महक
ग़ज़ल
ख़ुद अपने लिए आप सज़ा भी करो तज्वीज़
मुंसिफ़ भी बनो उजरती जल्लाद भी रक्खो
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
रोज़ बक़ा-ए-बाहम की तज्वीज़ पे हम घुल-मिल जाते हैं
बैठ के अक्सर मौत किनारे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ