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ग़ज़ल
यूँ तो हैं अज्ज़ा बहुत से शामिल-ए-तरकीब-ए-इश्क़
आरज़ू लेकिन सर-ए-दारू है इस मा'जून में
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
तरकीब-ए-दिल ने दर्द को दरमाँ बना दिया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
साथ में अग़्यार के मैं भी सफ़-ए-मक़्तल में हूँ
सूरत-ए-तरकीब-ए-मौज़ूँ मिस्रा-ए-मोहमल में हूँ
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
खिंची थी क्या तिरी तस्वीर तरकीब-ए-अनासिर से
कि मुश्त-ए-ख़ाक में अंदाज़-ए-माशूक़ाना आ पहुँचा
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
अज़ल के रोज़ से अर्श-ओ-मलाइक सज्दा करते हैं
कोई तो बात है ऐ 'आरज़ू' तरकीब-ए-इंसाँ में
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
हो चुकी तरकीब-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ ना-कामयाब
सोचता हूँ अब पुकारूँ कौनसी आवाज़ में
उमा शंकर शादाँ ग्वालियरी
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए