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ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
क्या क़हर है वक़्फ़ा है अभी आने में उस के
और दम मिरा जाने में तवक़्क़ुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
हम मुसाफ़िर हैं ये दुनिया है हक़ीक़त में सरा
है तवक़्क़ुफ़ हमें इस जा तो फ़क़त रात की रात
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
इतनी देर और तवक़्क़ुफ़ कि ये आँखें बुझ जाएँ
किसी बे-नूर ख़राबे में उजाले मुझे कोई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
तेरे आने में तवक़्क़ुफ़ जब हुआ ऐ नामा-बर
ख़त उन्हें बेचैन हो कर हम ने लिक्खा एक और
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
मैं ने पूछा कि कोई दिल-ज़दगाँ की है मिसाल
किस तवक़्क़ुफ़ से कहा उस ने कि हाँ तुम और मैं