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ग़ज़ल
कोई तो बात है यारब हवा-ए-कू-ए-जानाँ में
असीरों को ज़रा तस्कीन हो जाती है ज़िंदाँ में
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
हमारी ख़ाक-ए-अफ़्सुर्दा सर-ए-कू-ए-बुताँ रख दी
कहाँ की चीज़ थी तू ने कहाँ ऐ आसमाँ रख दी