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ग़ज़ल
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मज़ा क्या उस बुत-ए-बे-पीर से दिल के लगाने का
जो ख़ल्वत में हो बुत महफ़िल में हो तस्वीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ब-वक़्त-ए-नज़्अ' वो आए क़रीब 'अज़्का' के
क़ज़ा भी लगने लगी उस को ज़िंदगी की तरह
फौज़िया अख़्तर अज़्का
ग़ज़ल
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
मुर्ग़ान-ए-क़ुद्स के लिए गुल-दाम ले गया