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ग़ज़ल
ख़ुदी से इस तिलिस्म-ए-रंग-ओ-बू को तोड़ सकते हैं
यही तौहीद थी जिस को न तू समझा न मैं समझा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे
ये बंदा दो-आलम से ख़फ़ा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
तुम तो बे-मिस्ल हो तौहीद-ए-मोहब्बत की क़सम
तुम सा क्या होगा जहाँ में कोई मुझ सा भी नहीं
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
मस्तियाँ 'साहिर' की हैं जाम-ए-मय-ए-तौहीद से
हो सके तो ऐसे काफ़िर को मुसलमाँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
अपनी तक़्दीस पे यूँ शैख़-ए-हरम मत इतरा
मैं ने भी परचम-ए-तौहीद उठा रक्खा है
सय्यद अब्दुस सत्तार मुफ़्ती
ग़ज़ल
राज़-ए-तौहीद तो कसरत में छुपा है ऐ दोस्त
सैकड़ों जल्वे हैं इक जल्वा-नुमा है ऐ दोस्त
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
तज्दीद-ए-मिसाली में है तफ़रीद-ए-मुजर्रद
तौहीद है ये और हैं बे-सर्फ़ा ख़यालात
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
सफ़हा दिल मिरा आईना-ए-रम्ज़-ए-तौहीद
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा मिरे अफ़्साने का