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ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-वफ़ा में उम्र भर की सफ़्हा-गर्दानी
समझ में आई उल्फ़त की किताब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में हम ने 'वफ़ा' जब अपना सब कुछ वार दिया
तब जा कर इस दश्त-ए-जुनूँ में आए हैं समझाने लोग
वफ़ा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फिर आज अहल-ए-जौर को शिकस्त-ए-फ़ाश हो गई
फिर आज अहल-ए-दिल ने परचम-ए-'वफ़ा' उठा लिया