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ग़ज़ल
ज़हर है फ़न के लिए दरबार-दारी का मिज़ाज
कम-तरीन-ए-शर्त-ए-गोयाई है इख़लास-ए-बयाँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
हमें जागीर-ए-आज़ादी मिली दरबार-ए-शाही से
अहमद जावेद
ग़ज़ल
डर नहीं मुझ को गुनाहों की गिराँ-बारी का
तेरी रहमत है सबब मेरी सुबुकसारी का
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ज़माने के दरबार में दस्त-बस्ता हुआ है
ये दिल उस पे माइल मगर रफ़्ता रफ़्ता हुआ है
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
न हम महव-ए-ख़याल अबरू-ए-ख़म-दार सोते हैं
सिपाही हैं ज़ि-बस बाँधे हुए तलवार सोते हैं
मारूफ़ देहलवी
ग़ज़ल
उन्हें मक़्सूद अगर तर्क-ए-वतन की आज़माइश है
तो हम समझेंगे अब रस्म-ए-कुहन की आज़माइश है