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ग़ज़ल
बदन समंदर की लहरों जैसा और आँख दरिया-ए-नील जैसी
हम इन में बह जाएँ यार लेकिन तिरी तबी'अत है झील जैसी
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
बदन समंदर के लहरों जैसा और आँख दरिया-ए-नील जैसी
हम इन में बह जाएँ यार लेकिन तिरी तबी'अत है झील जैसी
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
यद-ए-बैज़ा की तू है मालकिन ऐ सफ़ेद संग की मूर्ती
तिरी आँख दरिया-ए-नील है मिरी रात कोई निकाल भी
तनवीर मोनिस
ग़ज़ल
न छेड़ो मुझ को मैं ग़व्वास हूँ दरिया-ए-मअनी का
न ढूँडो मुझ को मुसतग़रक़ हूँ मैं बिल्कुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कुछ तो कर दरिया मिरे इन को डुबो या पार कर
कश्तियों ने अपना दुख आब-ए-रवाँ पर लिख दिया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ये शुऊ'र-ए-तिश्नगी है या ग़ुरूर-ए-तिश्नगी
तिश्ना-लब दरिया पे जा के तिश्ना-लब लौट आए है