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ग़ज़ल
मेरे अरमानों का मरकज़ मेरे दर्दों का इलाज
टिमटिमाता सा दिया इक गोशा-ए-मंज़िल में था
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
कितने दर्दों में दवाओं की सी तासीर भी है
तन ब-तक़दीर ही रह जा कि ये तदबीर भी है
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
ग़मों की भीड़ दर्दों की निगहबानी में रहना है
बता ऐ ज़िंदगी कब तक परेशानी में रहना है