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ग़ज़ल
इशरत जहाँगीरपूरी
ग़ज़ल
मैं मुद्दत से तिरी आमद का यूँ आलम सजाए हूँ
अजब है बे-ख़ुदी दहलीज़ पे नज़रें जमाए हूँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैं मुद्दत से तिरी आमद का यूँ आलम सजाए हूँ
अजब है बे-ख़ुदी दहलीज़ पे नज़रें जमाए हूँ