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ग़ज़ल
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से अजब तिरा दर्द का नाता देख हमें मत भूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'नरेश' अक़सा-ए-आलम जगमगा उट्ठे निगाहों में
तसव्वुर में मिरे जिस दम मिरा वो रश्क-ए-हूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सर-गर्म-ए-सफ़र हूँ मैं तिरे दश्त में कब से
मुझ को मिरी मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देता
इब्न-ए-रज़ा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सारे दिन करते हैं हम दश्त-ए-तमन्ना का सफ़र
गर्द चेहरे पे लिए शाम को घर आते हैं