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ग़ज़ल
छीन लो मुझ से दोस्तो ताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ
उस ने मिज़ाज-ए-यार को दावत-ए-बरहमी भी दी
माहिर-उल क़ादरी
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दे रही हैं हर नफ़स को दावत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
ये मिज़ाज-ए-दहर की तब्दीलियाँ कुछ इन दिनों