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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं
बस प्यार हमारी क़ीमत है मिल जाए तो हम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
ग़ज़ल
निशाना तीर-ए-तोहमत का है मेरा अख़्तर-ए-ताले
उठाऊँ दाग़ मैं तो आसमाँ समझे दिरम पाया
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
मोहसिन ज़ैदी
ग़ज़ल
हैं तलबगार मोहब्बत के मियाँ जो अश्ख़ास
वो भला कब तलब-ए-दाम-ओ-दिरम करते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तुझ को भी इश्क़-ए-बुताँ का मज़ा कुछ हो मालूम
तेरे पल्ले हों अगर दाम-ओ-दिरम ऐ नासेह
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ग़ैर वसलत के तिरे और न ख़्वाहिश अपनी
क्या तला नुक़रा-ओ-दीनार-ओ-दिरम चारों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
हम ने हर साँस को सदक़ा किया दुनिया पे तिरी
हाँ हिसाब-ए-दिरम-ओ-दाम अभी बाक़ी है