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ग़ज़ल
हम मअनी-ए-हवस नहीं ऐ दिल हवा-ए-दोस्त
राज़ी हो बस इसी में हो जिस में रज़ा-ए-दोस्त
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ज़ामिन नश्व-ओ-नुमा-ए-गुल-ए-तर है ऐ 'दिल'
दर्द-मंदी की ख़लिश सी जो दिल-ए-ख़ार में है