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ग़ज़ल
कहते हैं कि वो भी यही कहते हैं करूँ क्या
कहते हो कि दिल-जूइ-ए-आदा न करो तुम
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
क्यूँकर ये कहें मिन्नत-ए-आदा न करेंगे
क्या क्या न किया इश्क़ में क्या क्या न करेंगे