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ग़ज़ल
दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए-गुल की रातों को
कुंज-ए-क़फ़स में सुन लेते हैं भूली-बिसरी बातों को
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
क्या काम इंक़लाब का कुछ भी नहीं यहाँ
दौर-ए-फ़लक के दौरा-ए-साग़र को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
नक़्श उस का भी किया दौर-ए-फ़लक ने बातिल
थी जो कावे के अलम से बंधी इक़बाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हरगिज़ 'बक़ा' न रहियो दौर-ए-फ़लक से ग़ाफ़िल
मस्तों की नित कमीं में सर-चंग-ए-मोहतसिब है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
सर-गश्ता हूँ दौर-ए-फ़लक-ए-पीर से पहले
गर्दिश में हूँ मैं गर्दिश-ए-तक़दीर से पहले