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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मंदिरों में संख बाजे मस्जिदों में हो अज़ाँ
शैख़ का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हम को दिवाना जान के क्या क्या ज़ुल्म न ढाया लोगों ने
दीन छुड़ाया धर्म छुड़ाया देस छुड़ाया लोगों ने
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
इश्क़ से कैसे बाज़ आएँ हम इश्क़ तो अपना धर्म हुआ
जिस दिन इश्क़ से नाता टूटा समझो क्रिया-कर्म हुआ
ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल
शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें
कुछ ख़ुदा के क़हर कुछ इनआम की बातें करें
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
कौन से मज़हब में लिक्खा है कि नफ़रत धर्म है
मिल के इस दुनिया से नफ़रत को मिटाना चाहिए
अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
रस्म रिवायत दीन-धर्म ईमान भरोसे वाले ही क्यों
इश्क़ में जीने मरने वाले भी पैग़म्बर हो जाते हैं