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ग़ज़ल
साया-ए-नख़्ल-ए-तमन्ना से गुरेज़ाँ था बहुत
साया-ए-नख़्ल-ए-तमन्ना में सुलगता हुआ हूँ
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
अहद-ए-तिफ़्ली से जुनून-ए-इश्क़ कामिल है शफ़ीक़
शाख़-ए-नख़्ल-ए-बेद-ए-मजनूँ से मिरा गहवारा था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
क्या फल लगा है नख़्ल-ए-तमन्ना-ए-यार में