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ग़ज़ल
मैं भी रहा हूँ ख़ल्वत-ए-जानाँ में एक शाम
ये ख़्वाब है या वाक़ई मैं ख़ुश-नसीब था
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत मैं ख़ुश नसब, मैं नजीब!
मिरा क़बीला तिरा ग़म, मिरा नसब तिरी याद
इफ़्तिख़ार मुग़ल
ग़ज़ल
मैं बिगड़ गया तिरी इक नज़र से वगर्ना मुझ को तो देख कर
ये गली की औरतें बोलतीं इसे देखो कैसा नजीब है