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ग़ज़ल
जब भी देखो नहाना धोना उन का रहता है चालू
संडे मंडे जुमा हफ़्ता ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
मदहत-ए-साक़ी-ए-कौसर तुझ को लिखनी है 'क़लक़'
पहले आब-ए-हौज़-ए-कौसर से नहाना चाहिए