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ग़ज़ल
तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना हो डूब जाते हैं सफ़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कश्ती-ए-दिल की इलाही बहर-ए-हस्ती में हो ख़ैर
नाख़ुदा मिलते हैं लेकिन बा-ख़ुदा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अँधेरी रात तूफ़ानी हवा टूटी हुई कश्ती
यही अस्बाब क्या कम थे कि इस पर नाख़ुदा तुम हो
सरशार सैलानी
ग़ज़ल
हमारे दिल को बहर-ए-ग़म की क्या ताक़त जो ले बैठे
वो कश्ती डूब कब सकती है जिस के ना-ख़ुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़ुद हुस्न ना-ख़ुदा-ए-मोहब्बत ख़ुदा-ए-दिल
क्या क्या लिए हैं मैं ने तिरे नाम प्यार में