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ग़ज़ल
मन अंदाज़-ए-क़दत-रा मी शनासम मर्द-ए-अफ़रंगी
कि कपड़े साफ़ हैं लेकिन बदन नापाक दिल मैला
शफ़ीक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है
माटी में सन रहे हैं नापाक ज़िंदगी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बुल-हवस नापाक की अज़-बस-कि भारी है नज़र
पर्दा-ए-इस्मत में तू अपने तईं उस सीं छुपा
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
जब्बार वासिफ़
ग़ज़ल
मुझ से रक़ीब-ओ-लईं जीव में रखता है कीं
उस सग-ए-नापाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
ज़हर-ए-साअत ही पिएँ जिस्म तह-ए-ख़ाक तो हो
सर्द आँखों में कोई ख़्वाहिश-ए-नापाक तो हो
ज़फ़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हम नापाक रहा करते हैं वस्ल नहीं करते हैं जब
उस के बदन के आब में धुल कर पाकीज़ा हो जाते हैं
मुमताज़ इक़बाल
ग़ज़ल
देते हैं नफ़रत का उजाला नफ़रत के नापाक दिए
क्यों न बुझाए तू ने अब तक वक़्त-ए-अज़ाँ है जाग हवा