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ग़ज़ल
ऐब ऐ 'रौशन' समझते हैं हुनर कोई हुनर
ना-मुवाफ़िक़ है ज़माना अब कमाल अच्छा नहीं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
मिज़ाजें ना-मुवाफ़िक़ हों तो कब सोहबत बरार होए
नहीं मिलती हमारी तब्अ इन दुनिया के जीफ़ों सीं
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हवाएँ तुंद मौसम ना-मुवाफ़िक़ बाग़बाँ बरहम
अजब आलम में रक्खी है नशेमन की बिना मैं ने
एहसान दरबंगावी
ग़ज़ल
नाम रौशन कर के क्यूँकर बुझ न जाता मिस्ल-ए-शम्अ'
ना-मुवाफ़िक़ थी ज़माने की हवा मेरे लिए
मीर अनीस
ग़ज़ल
ना-मुवाफ़िक़ दौर में अपने भी हो जाते हैं ग़ैर
ख़ुश्क मौसम हो तो दीवारों में लग जाती है आग
मुशीर झंझान्वी
ग़ज़ल
रगों में उतरी है जो शय वो ना-मुवाफ़िक़ है
कि सारे जिस्म में काँटे से बो रहा है लहू
अली अकबर अब्बास
ग़ज़ल
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
महबूब ख़ाँ रौनक़
ग़ज़ल
इब्तिदा में दर्द-ए-फ़ुर्क़त मौत है अंजाम-ए-इश्क़
अहल-ए-दिल को ना-मुवाफ़िक़ है हवा-ए-बाम-ए-इश्क़
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
बा'द मुद्दत जो मैं ऐ चर्ख़-ए-कुहन याद आया
क्या सितम कोई नया मुश्फ़िक़-ए-मन याद आया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
डगर सुनसान बिजली की कड़क पुर-हौल तारीकी
मुसाफ़िर राह से ना-आश्ना बरसात सावन की