इंतिज़ार-ए-हश्र कर सकते नहीं नाकाम-ए-इश्क़
आज ही हो जाए होना हो जो कल अंजाम-ए-इश्क़
इब्तिदा में दर्द-ए-फ़ुर्क़त मौत है अंजाम-ए-इश्क़
अहल-ए-दिल को ना-मुवाफ़िक़ है हवा-ए-बाम-ए-इश्क़
बे-ख़ुदी में डबडबा आए हैं आँसू आँख में
अल-मदद ऐ ज़ब्त छलका चाहता है जाम-ए-इश्क़
उस की उल्फ़त ने किया रूस्वा-ए-आलम किस क़दर
उँगलियाँ उठती हैं जाते हैं जिधर बदनाम-ए-इश्क़
क्यों नसीहत में तिरी नासेह हैं ये दिल-सोज़ियाँ
क्या तिरे दिल पर गुज़रते हैं मिरे आलाम-ए-इश्क़
चश्म-ए-गिर्यां क़ल्ब-ए-नालाँ की शमातत क़हर है
दोनों मिल कर इक मुझी को देते हैं इल्ज़ाम-ए-इश्क़
हसरतें भी आज दिल के साथ ही दम तोड़ दें
आगे पीछे साथ वालों का न हो अंजाम-ए-इश्क़
बाम पर आ कर ज़रा बिखराइए ज़ुल्फ़-ए-दराज़
फैल जाए सारे आलम में सवाद-ए-शाम-ए-इश्क़
और क्या ए'जाज़ होता हुस्न-ए-लैला के लिए
मर गया मजनूँ मगर ज़िंदा है अब तक नाम-ए-इश्क़
चार ही दिन में 'नज़र' तुम इस क़दर घबरा गए
आसमाँ से कोई पूछे गर्दिश-ए-अय्याम-ए-इश्क़
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