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ग़ज़ल
दरमियाँ रश्क-ओ-हसद के आज भी उलझे हैं लोग
था गराँ कल भी इलाज-ए-तिश्नगी-दामाँ बहुत
अब्दुस्सलाम आसिम
ग़ज़ल
मीर अली औसत रशक
ग़ज़ल
क़ुबूल-ए-ख़ातिर-ओ-लुत्फ़-ए-सुख़न ऐ 'रश्क' और ही है
नहीं तो शाइ'रों से और क्या क्या हो नहीं सकता
मीर अली औसत रशक
ग़ज़ल
रश्क-ए-महशर कोई क़ामत तो निगाहों में जचे
दिल में बाक़ी है अभी ताब-ओ-तवाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
गुबार-ए-कीना-ओ-बुग़्ज़-ओ-हसद से पाक है ये दिल
हमारे आइने ने मुँह नहीं देखा कुदूरत का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
है दिल में बुग़ज़-ओ-'इनाद-ओ-हसद रिया-कारी
उन्हीं की सिर्फ़ ये 'आदत है क्या किया जाए
बिसमिल आज़मी
ग़ज़ल
लोग रखते हैं दिलों में आतिश-ए-बुग़्ज़-ओ-हसद
और फिर करते हैं शिकवा जल रहा है तन बदन
शायान क़ुरैशी
ग़ज़ल
दिल पे हिर्स-ओ-हसद-ए-बादिया-पैमा न करें
इस से बेहतर है कि शग़्ल-ए-मय-ओ-पैमाना करें