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ग़ज़ल
जब याद किया उस ने फिर किस की फ़रामोशी
यूँ आते हैं होश 'अकबर' यूँ जाती है बे-होशी
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
ज़िंदगी भर तिश्ना-लब रहना हमें मंज़ूर था
वर्ना मय-ख़ाना हमारे घर से कितनी दूर था
राही हमीदी चाँदपुरी
ग़ज़ल
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह
अब जो आता है कभी दिल में तो वो गोश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
ख़ुद अपनी फ़िक्र-ओ-नज़र की बहार में गुम हूँ
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं
मैं वो इंसाँ हूँ जिसे नाम-ओ-नसब याद नहीं