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ग़ज़ल
वो हँसते हैं तो खुलता है जवाहिर-ख़ाना-ए-क़ुदरत
इधर लाल और उधर नीलम इधर मर्जां उधर मोती
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
पड़ी रुख़ पे ज़ुल्फ़-ए-पुर-ख़म मिसी रश्क-ए-रंग-ए-नीलम
ग़रज़ इस तरह का आलम कि परी कहे अहा-हा