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ग़ज़ल
जो ख़ालिस नेता है वा'दे का पक्का हो नहीं सकता
कि जैसे जेब में गंजे के कंघा हो नहीं सकता
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
शक के साए फैल रहे हैं बस्ती वाले हैराँ हैं
उस ने दरिया पार किया है तो क्या मटका पक्का था
रज़्ज़ाक़ अरशद
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
हिज्र में सोचा था अब दिल को पक्का कर लेंगे लेकिन
वस्ल के वादे दिल के आहन को सय्याल बनाते हैं
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
ये दुनिया ठीक कहती है मोहब्बत आफ़त-ए-जाँ है
तो बस अब फ़ैसला पक्का न तू मेरी न मैं तेरा