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ग़ज़ल
नईम समीर
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-ख़ंदाँ की तरह लौह-ओ-क़लम जागे हैं
जब तिरी ज़ुल्फ़ के ख़म से मिरे ग़म जागे हैं
मंज़िल लोहाठेरी
ग़ज़ल
तहरीर हम अफ़्साना-ए-ग़म करते रहेंगे
सर मरहला-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया
ग़ज़ल
ज़िक्र जब अपने हर इक ज़ख़्म-ए-वफ़ा का होगा
गुल-फ़िशानी भी सर-ए-लौह-ओ-क़लम देखेंगे
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
साहिब-ए-लौह-ओ-क़लम उस के सिवा कोई नहीं
सारे गुल-बूटे 'नियाज़' उस की ही तहरीर के हैं