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ग़ज़ल
मतीन नियाज़ी
ग़ज़ल
नफ़रतों की पुश्त पर हैं ऊँची-ऊँची हस्तियाँ
अब मोहब्बत की हिफ़ाज़त कर रही हैं पस्तियाँ
मोअज़्ज़म अज़्म
ग़ज़ल
जिन को मिलीं बुलंदियाँ देखीं उन्हों ने पस्तियाँ
होती है हर दफ़ा मगर वज्ह-ए-ज़वाल मुख़्तलिफ़
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
पस्तियाँ पंजों के बल उछली तो क़ीमत बढ़ गईं
अज़्मतें बाज़ार में पहुँचीं तो अर्ज़ां हो गईं
फ़रूक़ अरगली
ग़ज़ल
हैं गहरी जड़ से शजर की बुलंदियाँ मशरूत
सो पस्तियाँ ये कहीं मेरा इर्तिक़ा तो नहीं