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ग़ज़ल
क्या ये मौसम तिरे क़ानून के पाबंद नहीं
मौसम-ए-गुल में ये दस्तूर-ए-ख़िज़ाँ किस का है
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
तर्क-ए-मोहब्बत अपनी ख़ता हो ऐसा भी हो सकता है
वो अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो ऐसा भी हो सकता है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
वक़्त की पाबंद हैं आती जाती रौनक़ें
वक़्त है फूलों की सेज वक़्त है काँटों का ताज
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जल्वे थे हल्क़ा-ए-सर दाम-ए-नज़र से बाहर
मैं ने हर जल्वे को पाबंद-ए-नज़र जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
देख लो ऐ गुल-रुख़ो मुर्ग़ान-ए-दिल पाबंद हैं
बाल के फँदे की सूरत हैं तुम्हारी चूड़ियाँ