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ग़ज़ल
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
आँखों को पुर-नम हसरत का दरवाज़ा वा रक्खा है
अपने टूटे ख़्वाब को हम ने अब तक ज़िंदा रक्खा है
मनीश शुक्ला
ग़ज़ल
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी
मोहब्बत ख़ंदा-ए-बे-बाक भी है गिर्या-ए-ग़म भी