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ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ से 'फ़ख़्र' यही इक सवाल है
औंधे हैं आज जाम-ओ-सुबू क्यूँ शराब के
इफ़तिख़ार अहमद फख्र
ग़ज़ल
मय-ए-सुख़न से न पिघले जो आबगीना-ए-दिल
तो 'फ़ख़्र' शो'ला-नवाई तो कोई बात नहीं
इफ़तिख़ार अहमद फख्र
ग़ज़ल
हम 'फ़ख़्र' सरकशों के न आगे कभी झुके
रखते हैं इक तबीअ'त-ए-ख़ुद्दार क्या करें
इफ़तिख़ार अहमद फख्र
ग़ज़ल
नूर जो ख़ाक के ज़र्रों को दरख़शानी दे
फ़ख़्र-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब हुआ करता है
सय्यद सिद्दीक़ हसन
ग़ज़ल
कोई ज़र्रा जो दिल की ख़ाक का बर्बाद होता है
जहान-ए-इश्क़ में शोर-ए-मुबारकबाद होता है
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
जल्वा-फ़रमाई का मुज़्दा किस ने भेजा है कि आज
दीदा-ओ-दिल हम-दिगर सर्फ़-ए-मुबारकबाद हैं
तालिब अली खान ऐशी
ग़ज़ल
ज़माना-साज़ निकले फ़ख़्र-ए-रूदाद-ए-जहाँ निकले
नज़र जिस वर्क़ पर डालो हमारी दास्ताँ निकले