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ग़ज़ल
फ़रेब-ए-शौक़ न दे वक़्फ़-ए-इम्तिहाँ न बना
मिरी तलब को बस अब और भी गिराँ न बना
उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
ढूँढता फिरता है मुझ को क्यूँ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैं वहाँ हूँ ख़ुद जहाँ अपना पता मिलता नहीं
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल
न हो जाए कहीं ज़ेर-ओ-ज़बर ये आईना-ख़ाना
निगाह-ए-'शौक़' से जल्वों की हैरानी नहीं जाती
शौक़ बिजनौरी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-शौक़ ने नाकाम-ए-जुस्तुजू रक्खा
तलाश जिस की थी उस का कहीं पता न मिला
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
फ़ुर्सत मिले कभी तो शब-ए-ग़म से पोंछना
टूटे हैं चश्म-ए-'शौक़' से तारे कहाँ कहाँ