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ग़ज़ल
नहीं अच्छा ज़बान-ए-हाल से आह-ओ-बुका टपकें
अभी माज़ी के लब पर ही है कुछ शोर-ए-फ़ुग़ाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-ग़म-ओ-अलम से जब दिल हुआ है गिर्यां
उस ने इनायतों के दरिया बहा दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
ये फ़र्त-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी का है असर 'मंशा'
ज़मीं मकानों की गीली है नम हैं दीवारें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
वस्ल की धुन में सदा महव-ए-बुका रहता हूँ मैं
बहते पानी पर लकीरें खींचता रहता हूँ मैं
हनीफ़ नज्मी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-सोज़-ए-उल्फ़त में देख कर सकूँ दिल का
बिजलियाँ मचलती हैं बादलों के महशर में
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
दिल से हर-दम हमें आवाज़-ए-बुका आती है
बंद कानों को भी गिर्या की सदा आती है
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
'अनीस' एहसास-ए-दर्द-ओ-फ़र्त-ए-मायूसी को क्या कहिए
कि अब आँसू भी मेरी आँख से कमतर निकलते हैं
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-काहीदगी-ए-दर्द से यारब अब तो
सब के सब हो गए हैं पीर जवान-ए-देहली
तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-हुजूम-ए-ख़ल्क़ से हों बंद रास्ते
वो रश्क-ए-यूसुफ़ आए जो बाज़ार की तरफ़
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
मक़्दूर नहीं हम को फ़र्त-ए-दम-ए-जौलाँ पर
कर देंगे निछावर जाँ हम 'इश्वा-ए-सामाँ पर