aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "फ़ारूक़"
चलता हूँ एहतियात से 'फ़ारूक़' इस लिएकर लूँ न फिर कहीं कोई नुक़सान देखना
ये राज़ किस से बताऊँ ये बात किस से कहूँहदीस-ए-शौक़ का उनवाँ है एक हर्फ़-ए-जुनूँ
होने वाला था इक हादसा रह गयाकल का सब से बड़ा वाक़िआ रह गया
बहुत धोका किया ख़ुद को मगर क्या कर लिया मैं नेतमाशा मुझ को करना था तमाशा कर लिया मैं ने
क्यूँ सितम उस के बारहा 'फ़ारूक़'गाम-दर-गाम भूल जाता हूँ
दोस्ती में दिल जो टूटा दुश्मनी अच्छी लगीरौशनी में लुट गए तो तीरगी अच्छी लगी
'फ़ारूक़' दिल का हाल मैं जा कर किसे कहूँहर चेहरा मुझ को अपना ही चेहरा दिखाई दे
फूलों को वैसे भी मुरझाना है मुरझाएँगेखिड़कियाँ खोलीं तो सन्नाटे चले आएँगे
अब तो 'फ़ारूक़' इसी हाल में ख़ुश रहते हैंवक़्त है पास कहाँ अपने बदलने के लिए
जो ख़ुद पे बैठे बिठाए ज़वाल ले आएकहाँ से हम भी लिखा कर कमाल ले आए
बात ख़ुश्बू की थी मगर 'फ़ारूक़'ध्यान आया किसी का बरजस्ता
मैं तो लम्हात की साज़िश का निशाना ठहरातू जो ठहरा तो तिरे साथ ज़माना ठहरा
दूर तक 'फ़ारूक़' तपती रेत हैअब यहाँ आते नहीं सैलाब वो
मंज़र अजब था अश्कों को रोका नहीं गयाहँसता हुआ जो आया था हँसता नहीं गया
तेरे कूचे में जा के भूल गएख़ुद को हम याद आ के भूल गए
गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना हैतेरी ही ज़ुल्फ़ों का दफ़्तर लिखना है
ये सौदा इश्क़ का आसान सा हेज़रा बस जान का नुक़सान सा है
पुख़्ता होने न दिया ख़ाम भी रहने न दियाइश्क़ ने ख़ास तो क्या आम भी रहने न दिया
हम तिरे इश्क़ पे मग़रूर न हो जाएँ कहींइस क़दर पास न आ दूर न हो जाएँ कहीं
तुम्हारी याद में कुछ इस तरह थीं नम आँखेंतमाम शब नहीं कर पाए बंद हम आँखें
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