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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
बग़ल में ग़ैर की आज आप सोते हैं कहीं वर्ना
सबब क्या ख़्वाब में आ कर तबस्सुम-हा-ए-पिन्हाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उल्फ़त का लुत्फ़ क्या जो बग़ल ही न गर्म हो
वो दिल में रहने वाले हमारे हुए तो क्या
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
शेर आशिक़ आज के दिन क्यूँ रक़ीबाँ पे न हों
यार पाया है बग़ल में ख़ाना-ए-ख़ुरशीद है
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
यक-क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो उस को
पलकों से तेरी ख़ातिर क्यूँ-कर निचोड़ डालूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
रात सोहबत गुल से दिन को हम-बग़ल ख़ुर्शीद से
रश्क अगर कीजे तो रश्क-ए-बख़्त-ए-शबनम कीजिए