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ग़ज़ल
ऐ शम्अ बचाना दामन को इस्मत से मोहब्बत अर्ज़ां है
आलूदा-नज़र परवानों के जज़्बात की निय्यत ठीक नहीं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
मुनाफ़िक़ों में शब-ओ-रोज़ भी गुज़ारता हूँ
और उन की ज़द से भी ख़ुद को बचाना होता है
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
कहीं तो लुटना है फिर नक़्द-ए-जाँ बचाना क्या
अब आ गए हैं तो मक़्तल से बच के जाना क्या