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ग़ज़ल
कहीं खाना ही खाना है मगर पीने से कब फ़ुर्सत
कहीं पे भूक की बस्ती में बीमारी की बातें हैं
हिना रिज़्वी
ग़ज़ल
बुरे इंसाँ को बद-कारी का महवर खींच लेता है
कि जैसे-तैसे दरिया को समुंदर खींच लेता है
इनायत अमीन
ग़ज़ल
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बे-कार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं