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ग़ज़ल
जो तुझ से हो सके सौदा-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत कर
दिल-ओ-जाँ तक भी जाने में ज़रर होवे तो मैं जानूँ
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
हुक्म कर 'आतिश' कि बाज़ार-ए-मोहब्बत बंद हो
अब करें टटपूजिए गर्म अपनी दूकाँ-दारियाँ
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बाज़ार-ए-मोहब्बत में कमी करती है तक़दीर
बन बन के बिगड़ जाता है सौदा मिरे दिल का