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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मेरे एहसास की ये बाढ़ तो रुकने से रही
मुझ को दीवाना बना दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
बाढ़ दी बाँकी अदाओं ने जो ख़ंजर को 'जलील'
ज़ब्ह करने में मिरे क़ातिल को आसानी हुई