आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बाद-मस्ती-ए-हर"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "बाद-मस्ती-ए-हर"
ग़ज़ल
है वही बद-मस्ती-ए-हर-ज़र्रा का ख़ुद उज़्र-ख़्वाह
जिस के जल्वे से ज़मीं ता आसमाँ सरशार है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्यूँ जानते हैं सनअत-ओ-हिरफ़त को बाग़-ए-ख़ुल्द
ग़ैरों की हम निगाह में हैं ख़ार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फैली हुई है मस्ती-ए-दाम-ए-बहार-ए-नौ
हर इक रविश है कैफ़ का सामाँ लिए हुए
क़ाज़ी सय्यद मुश्ताक़ नक़्वी
ग़ज़ल
मस्ती-ए-रिंदाना हम सैराबी-ए-मय-ख़ाना हम
गर्दिश-ए-तक़दीर से हैं गर्दिश-ए-पैमाना हम
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
दिल की हर लग़्ज़िश-ए-मासूम पे सौ ख़ुल्द निसार
मस्ती-ए-जुर्म समझ शोरिश-ए-ता'ज़ीर न देख
अदीब मालेगांवी
ग़ज़ल
तबाही घेरने वाली थी आख़िर किन सफ़ीनों को
तह-ए-गिर्दाब शोर-ए-हर-चे बादा-बाद बाक़ी है